
रासायनिक खेती छोड़ जैविक खेती की ओर किसानों का रुझान
Best Indore News: देश में बढ़ती रासायनिक खेती के नुकसान ने किसानों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। स्वास्थ्य और मिट्टी की उर्वरता पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए कई किसान अब जैविक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में इंदौर और आसपास के कई किसानों ने गुड़, बेसन और गोबर से बने जीवामृत का उपयोग शुरू किया है। यह एक प्राकृतिक खाद और कीटनाशक है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ फसल को रोगों से भी बचाता है।
जीवामृत क्या है और कैसे बनता है?
जीवामृत एक प्रकार का जैविक घोल है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल है। इसे बनाने के लिए निम्न सामग्री की जरूरत होती है:
- गाय का गोबर – लगभग 10 किलो
- गाय का मूत्र – 10 लीटर
- गुड़ – 2 किलो
- बेसन (चना पाउडर) – 2 किलो
- पानी – 200 लीटर
इन सभी चीजों को एक ड्रम में मिलाकर 3 से 5 दिनों तक रखा जाता है। इस दौरान मिश्रण को रोजाना हिलाया जाता है, ताकि उसमें सूक्ष्मजीव सक्रिय रह सकें। यह घोल फसल पर छिड़काव के लिए और सिंचाई के पानी में मिलाने के लिए उपयोग किया जाता है।
रासायनिक खादों से नुकसान क्यों?
रासायनिक खाद और कीटनाशक से मिट्टी की उर्वरता खत्म हो रही है। लंबे समय तक इनका उपयोग करने से मिट्टी कठोर हो जाती है, पानी सोखने की क्षमता घट जाती है और फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। यही नहीं, रासायनिक अवशेषों से मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता है।
जीवामृत के फायदे
- मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है।
- फसल की पैदावार में 15 से 20% तक वृद्धि होती है।
- लागत कम आती है, क्योंकि यह घोल घर पर ही तैयार किया जा सकता है।
- पर्यावरण के अनुकूल और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करता है।
देशी तकनीक और नवाचारों का उपयोग
किसानों ने सिर्फ जीवामृत ही नहीं, बल्कि अन्य देशी तकनीकें भी अपनाई हैं। जैसे वर्मी कम्पोस्ट, पंचगव्य और बायो-पेस्टिसाइड्स का उपयोग। ये तकनीकें न केवल सस्ती हैं, बल्कि खेतों को रासायनिक प्रदूषण से भी बचाती हैं।
किसानों का अनुभव
जिन किसानों ने जीवामृत का उपयोग किया है, उन्होंने बताया कि इससे मिट्टी की नमी लंबे समय तक बनी रहती है और फसल रोगों से सुरक्षित रहती है। इसके अलावा, खेती की लागत में भी काफी कमी आई है।
सरकारी प्रयास और योजनाएं
राज्य सरकार और केंद्र सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चला रही हैं। किसानों को ट्रेनिंग, सब्सिडी और उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
गुड़, बेसन और गोबर से बने जीवामृत जैसे जैविक विकल्प खेती को सस्टेनेबल बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यह न केवल किसानों की लागत घटाता है, बल्कि मिट्टी और मानव स्वास्थ्य को भी सुरक्षित करता है। रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान को देखते हुए जैविक खेती समय की मांग है। आने वाले समय में यही तकनीकें कृषि के भविष्य को सुरक्षित बनाएंगी।
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