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नागपंचमी पर घटती सपेरों की पहचान और आजीविका का संकट

Best Indore News The declining identity and livelihood of snake charmers on Nag Panchami

Best Indore News: नागपंचमी का त्योहार भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दिन नागदेवता की पूजा का विशेष महत्व होता है। पहले जहां इस त्योहार पर सपेरों की मौजूदगी और उनकी बीन की धुन पूजा का अहम हिस्सा होती थी, वहीं अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। आधुनिक दौर में कानून, सामाजिक बदलाव और जीवनशैली के कारण सपेरों का पुश्तैनी पेशा समाप्ति की कगार पर पहुंच गया है।

सपेरों की परंपरा और इतिहास

सपेरे भारतीय समाज में सदियों से मौजूद हैं। उनका जीवन सांपों के साथ जुड़ा हुआ था। नागपंचमी, मेलों और धार्मिक आयोजनों में सपेरे अपने सांपों को दिखाकर दान, कपड़े और भोजन प्राप्त करते थे। यह सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि उनके लिए सम्मान का प्रतीक था। लेकिन समय के साथ यह पेशा पूरी तरह से बदल गया।

परिवर्तन की बड़ी वजह

वन्यजीव संरक्षण कानून लागू होने के बाद सांपों को पकड़ना और उनके साथ प्रदर्शन करना अपराध घोषित कर दिया गया। इसके बाद से सपेरों का यह पारंपरिक पेशा लगभग खत्म हो गया। पहले वे सांपों के जरिए लोगों का मनोरंजन करते और अपने परिवार का पेट पालते थे, लेकिन अब यह तरीका गैरकानूनी है।

सपेरों की आज की हालत

मध्यप्रदेश और आसपास के राज्यों में सपेरों की बस्तियों में अब हालात बहुत खराब हैं। कई सपेरे मजदूरी करने लगे हैं तो कुछ शहरों में रिक्शा चलाते हैं। महिलाओं को घरेलू काम करना पड़ रहा है। सपेरों का कहना है कि पहले नागपंचमी पर वे पूजा करवाते थे, लोग दान देते थे, कपड़े और अनाज देते थे। अब यह सब सिर्फ यादों में रह गया है।

सांपों के बिना अधूरी पहचान

सपेरे मानते हैं कि सांप उनके जीवन का हिस्सा हैं। उनके बिना उनकी पहचान अधूरी है। लेकिन कानून और आधुनिक समाज ने उन्हें इस पेशे से अलग कर दिया। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति खराब हुई है बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान भी मिट रही है।

सरकार और समाज से उम्मीदें

सपेरों का कहना है कि सरकार उनकी मदद करे, ताकि उन्हें रोजगार के नए अवसर मिल सकें। कई एनजीओ और सामाजिक संगठन इन समुदायों को नई आजीविका देने की दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन इन प्रयासों का दायरा बहुत छोटा है।

कानूनी पहलू और संरक्षण

वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत सांपों को पकड़ना अपराध है, इसलिए सपेरों को इस पेशे से बाहर निकलना पड़ा। हालांकि, यह कानून जानवरों की सुरक्षा के लिए जरूरी था, लेकिन इसके चलते एक पूरी परंपरा और संस्कृति खत्म हो रही है।

नागपंचमी पर जहां पहले सपेरों की बीन की धुन गूंजती थी, अब वहां सिर्फ पूजा और दूध चढ़ाने की परंपरा बची है। सांपों को बचाने के लिए बनाए गए कानून सही हैं, लेकिन इस बदलाव से प्रभावित समुदायों को नए रोजगार के अवसर देना भी जरूरी है। अगर उन्हें समय पर सहारा नहीं मिला, तो यह पारंपरिक कला और संस्कृति हमेशा के लिए खो जाएगी।

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