
Best Indore News: इंदौर जिले के खुड़ैल क्षेत्र के एक सरकारी स्कूल में नाबालिग छात्राओं के शोषण का मामला सामने आया है। दो शिक्षकों पर अश्लील बातें करने, मारपीट करने और छात्राओं की लैंगिक गरिमा के खिलाफ अमानवीय व्यवहार करने के आरोप हैं।
शुरूआती घटना – कब और कहाँ?
इंदौर इस वर्ष अगस्त में इंदौर के एक सरकारी कन्या उच्चतर माध्यमिक स्कूल (मल्हारगंज) में गंभीर घटना सामने आई। उस दिन एक शिक्षक ने मोबाइल की घंटी सुनकर कुछ छात्राओं को शौचालय में बुलाया और वहां उनके कपड़े उतारकर तलाशी ली। नाबालिग बच्चियाँ भयानक मानसिक आघात से गुज़र रही थीं । आरोप है कि शिक्षिका ने मोबाइल की खोज के बहाने यह करने के साथ-साथ कुछ छात्राओं को वीडियो वायरल करने की धमकी भी दी और उनमें से कुछ को मारपीट से भी रूबरू कराया
पुलिस में शिकायत और सीमित कार्रवाई
घटना के पश्चात माता-पिता ने मल्हारगंज थाने में शिकायत दर्ज कराई, तथापि पुलिस ने तत्काल FIR दर्ज नहीं की और न ही POCSO के तहत तत्काल मुकदमा शुरू किया गया । इस निष्क्रियता के कारण पालकों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उच्च न्यायालय की शरण ली।
हाईकोर्ट की सख्ती
मामले की गंभीरता पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस दुप्पला वेंकटरमणा की पीठ) ने घटना को बेहद गंभीर मानते हुए राज्य सरकार, पुलिस कमिश्नर, कलेक्टर और मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया कोर्ट ने निर्देश दिया कि 7 दिन के भीतर POCSO एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करें और विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें
POCSO मुकदमा एवं रिपोर्ट में खामियाँ
हाईकोर्ट की सुनवाई में सामने आया कि शिकायत के 1 सप्ताह बाद भी पुलिस POCSO जैसे गंभीर कानून के अंतर्गत कोई कार्यवाही नहीं कर रही थी सरकार को रिपोर्ट जमा करने के बावजूद, कुछ भी सख्त कार्रवाई नहीं की गई।
एसडीएम रिपोर्ट और 9 साल में FIR नहीं
हालांकि वर्तमान घटनाक्रम इस वर्ष का है, लेकिन इसके पीछे लंबे समय से चली जाने वाली प्रकिया है जिसके तहत शिकायतों को प्रबंधन स्तर (मैनेजमेंट कमेटी, SDM) तक ले जाया गया। विश्वास है कि स्कूल अधोसंरचना, कर्मचारियों की शिकायतों की जांच और आरोपों पर कोई सक्रिय कार्रवाई नहीं हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर SDM स्तर पर बनी जांच रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि इतने समय में FIR दर्ज नहीं करने की प्रक्रिया का कोई उचित औचित्य नहीं दिखता, और इससे पीड़ित बच्चियों की सुरक्षा और न्याय वितरण दोनों प्रभावित हुए।
PMO का हस्तक्षेप
ऐसी घटनाओं से जुड़े सार्वजनिक आक्रोश को देखते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने संज्ञान लिया। इसकी सूचना के अनुसार PMO ने उच्च अधिकारियों को निर्देश दिए कि इस मामले की स्वतंत्र जांच करवाएं और पीड़ितों को न्याय दिलाने की पहल तेज़ करें
विश्लेषण: क्या यह अकेली घटना है?
इंदौर ही नहीं, मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी सरकारी स्कूलों से जुड़ी ऐसी घटनाओं की श्रृंखला चली आ रही है—
- नाबालिग बच्चियों के कपड़े उतरवाने जैसे मामले साल 2024 में भी उच्च न्यायालय की निगरानी में आए
- सरकारी स्कूलों की जर्जर इमारतें, शौचालय की कमी व सुरक्षा इंतजामों की कमी ने भी इन्हें जोखिमपूर्ण बना दिया है
इन मामलों से स्पष्ट होता है कि बुनियादी ढाँचे की कमी और बच्चों की सुरक्षा‑संबंधी नीतियों का लागू नहीं होना मिलकर उन्हें चिंता का विषय बना रहे हैं।
सहायता की दिशा: क्या कदम उठाने चाहिए?
- POCSO की तत्काल कार्यवाही
हर मामले में FIR दर्ज जाकर आरोपियों की गिरफ्तारी और पुख्ता सबूत इकट्ठा किए जाएँ। - निवारक उपाय
- शिक्षकों एवं स्टाफ की नियमित पृष्ठभूमि जांच (verification) होनी चाहिए।
- सीसीटीवी कैमरों की आवश्यकता सभी क्लासरूमों में होनी चाहिए।
- मासिक रिपोर्टिंग और मॉनिटरिंग
SDM, पुलिस, नगर पालिका की संयुक्त समीक्षा समिति बनाई जाए, जो महीने‑वार स्कूलों की स्थिति की समीक्षा करे। - पीड़ितों का समर्थन
- स्किल ट्रेनिंग, मनोवैज्ञानिक परामर्श, वैकल्पिक शिक्षा की व्यवस्था।
- उचित मुआवज़ा और सुरक्षा के लिए स्पेशल टीम का गठन।
इंदौर के सरकारी स्कूल में हुई यह घटना केवल एक “घटना” नहीं, बल्कि शैक्षणिक संस्थाओं में प्रणालीगत अंडरडेटेक्शन और नाबालिगों की सुरक्षा में मौजूदा खामियों की ज़ोरदार चेतावनी है।
सरकार, पुलिस, शिक्षा विभाग और समाज का सहयोग ही एक संभावित बदलाव ला सकता है। न्यायपालिका से अख्तियार मिलने के बाद यदि कार्यवाही समय पर की जाए और सभी नियंत्रक संस्थाएँ मिलकर जवाबदेही फोकस करें—तो यह घटनाएँ दोबारा नहीं होंगी।
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