कांच मंदिर, इंदौर – कांच में रची आध्यात्मिकता की बेमिसाल रचना

इंदौर, मध्यप्रदेश का दिल, जहां आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह शहर जहां एक ओर व्यापार और खान-पान के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत भी लोगों को आकर्षित करती है। इसी विरासत में एक अनमोल रत्न है – कांच मंदिर (Kanch Mandir), जो कला, श्रद्धा और वास्तुकला का अद्भुत संगम है। निर्माण और इतिहास कांच मंदिर का निर्माण 20वीं सदी की शुरुआत (1903-1904) में इंदौर के प्रसिद्ध उद्योगपति और समाजसेवी सर सेठ हुकुमचंद जैन द्वारा करवाया गया था। उन्हें ‘Cotton King’ और ‘Diamond King’ के नाम से भी जाना जाता था। उनका उद्देश्य था एक ऐसा मंदिर बनाना जो न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर हो, बल्कि कला और संस्कृति का जीवंत उदाहरण भी बने। उन्होंने बेल्जियम से आयातित शीशों, चीन से मोज़ेक सामग्री और राजस्थानी कारीगरों की मदद से इस मंदिर का निर्माण करवाया। उस समय इतनी भव्यता और बारीकी से बना यह मंदिर अपनी मिसाल खुद था। मंदिर की खासियत – कांच का जादू जैसा कि नाम से स्पष्ट है, पूरे मंदिर का इंटीरियर कांच और मिरर वर्क से बना हुआ है। मंदिर के अंदर कदम रखते ही एक अलग ही दुनिया में प्रवेश का अनुभव होता है: कुछ खास बातें: इस तरह की सजावट भारत के अन्य किसी धार्मिक स्थल में देखने को नहीं मिलती, जिससे यह मंदिर वास्तुकला के प्रेमियों के लिए किसी संग्रहालय से कम नहीं। धार्मिक महत्व यह मंदिर दिगंबर जैन संप्रदाय से संबंधित है और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है। प्रमुख धार्मिक विशेषताएं: यह स्थान केवल जैन धर्म के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए भी प्रेरणा का केंद्र है। स्थापत्य और कला कला का बेजोड़ संगम: रात्रि समय का दृश्य: रात में जब मंदिर की सजावट पर कृत्रिम प्रकाश पड़ता है, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा मंदिर सितारों से सजा हो। स्थान और पहुंच कांच मंदिर, इंदौर के राजवाड़ा क्षेत्र के इत्तेफाक रोड पर स्थित है। यह राजवाड़ा महल से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर है और इंदौर रेलवे स्टेशन से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित है। सरवटे बस स्टैंड से मंदिर तक पहुंचने में केवल 10 से 15 मिनट का समय लगता है। यदि आप पास में हैं तो मंदिर तक पैदल भी आसानी से पहुंचा जा सकता है, या फिर ऑटो व कैब की सुविधा भी उपलब्ध है। खुलने का समय और प्रवेश ज्योतिषीय दृष्टिकोण जैन मंदिरों की ऊर्जा अत्यंत शुद्ध और सात्त्विक मानी जाती है। कांच मंदिर का दर्शन करने से: पास के अन्य दर्शनीय स्थल यात्रा सुझाव कांच मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक कला-काव्य है। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव देता है, बल्कि हर आने वाले व्यक्ति को अपनी अनोखी भव्यता से चकित करता है। अगर आप इंदौर की यात्रा कर रहे हैं, तो कांच मंदिर आपके सफर का एक अविस्मरणीय हिस्सा बन सकता है। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट्स के लिए हमारी वेबसाइट Best Indore पर जरूर विजिट करें।
“हुकमचंद घंटाघर (इंद्र भवन): इंदौर की ऐतिहासिक शान का प्रतीक”

इंदौर, मध्यप्रदेश का हृदय, न केवल अपनी औद्योगिक प्रगति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की ऐतिहासिक धरोहरें भी शहर को एक अनोखी पहचान देती हैं। इन्हीं धरोहरों में से एक है – हुकमचंद घंटाघर, जिसे इंद्र भवन के नाम से भी जाना जाता है। इतिहास की झलक यह भव्य भवन लगभग 100 साल पुराना है और इसे इंदौर के जाने-माने उद्योगपति, समाजसेवी और कपड़ा सम्राट सर सेठ हुकमचंद जी द्वारा बनवाया गया था। हुकमचंद जी को इंदौर का टाटा या बिड़ला कहा जाता था, और उन्होंने न केवल व्यापार में सफलता प्राप्त की, बल्कि धर्म, समाज और शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान दिया। इंद्र भवन की भव्यता इंद्र भवन को देखने पर लगता है मानो आप किसी राजमहल में आ गए हों। इसकी महल जैसी वास्तुकला, ऊँचे बुर्ज, और खूबसूरत मेहराबें इसकी शान को बढ़ाती हैं। इसके चारों ओर फैला हुआ हरा-भरा बाग़, जिसमें इटली से लाए गए सुंदर संगमरमर के स्टैच्यूज़ (मूर्तियाँ) लगे हैं, इसे एक यूरोपीय टच प्रदान करता है। यह भवन अपने समय में इंदौर की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। यहाँ होने वाले आयोजन आज भी इंदौरवासियों को अपनी ओर खींचते हैं। सांस्कृतिक और कलात्मक गतिविधियाँ आज भी हुकमचंद घंटाघर परिसर में स्थानीय मेले, चित्रकला प्रदर्शनियाँ, हस्तशिल्प बाजार और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस ऐतिहासिक धरोहर ने इंदौर की रचनात्मक आत्मा को हमेशा जीवित रखा है। इस स्थल पर कई कलाकारों और स्थानीय शिल्पकारों को अपनी कला को प्रदर्शित करने का मंच मिलता है, जिससे यह भवन केवल इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत संस्कृति का भी प्रतीक बन चुका है। हुकमचंद जी का योगदान सर सेठ हुकमचंद जी न केवल एक सफल व्यापारी थे, बल्कि उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा समाज सेवा को समर्पित किया। उन्होंने इंदौर में कई विद्यालय, अस्पताल और धर्मशालाएँ बनवाईं। हुकमचंद चंदनमल बालिका विद्यालय, हुकमचंद नेत्र चिकित्सालय, और कई धर्मार्थ संस्थाएँ आज भी उनके परोपकारी कार्यों की गवाही देती हैं। आज का हुकमचंद घंटाघर हालांकि समय के साथ इस भवन की चमक कुछ फीकी पड़ी है, परंतु इसकी ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्ता आज भी वैसी ही है। कई पर्यटक और इतिहास प्रेमी यहाँ आते हैं, इसकी वास्तुकला को निहारते हैं और इंदौर के गौरवशाली अतीत से जुड़ाव महसूस करते हैं। इंदौर नगर निगम और कुछ स्थानीय संगठन अब इसके संरक्षण एवं पुनर्निर्माण के प्रयास में जुटे हैं ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सके। हुकमचंद घंटाघर या इंद्र भवन केवल एक इमारत नहीं है – यह एक प्रेरणा है, एक इतिहास है, और इंदौर की आत्मा का प्रतीक है। जब भी आप इंदौर जाएँ, इस स्थान पर अवश्य जाएँ। यहाँ की शांति, स्थापत्य और ऐतिहासिक ऊर्जा आपको एक अलग ही अनुभव देगी। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट्स के लिए हमारी वेबसाइट Best Indore पर जरूर विजिट करें।
इंदौर का गौरव – छत्रपति शिवाजीराव होलकर की समाधि स्थल

इंदौर शहर इतिहास, संस्कृति और परंपराओं से समृद्ध रहा है। इस शहर के गौरवशाली अतीत को जीवंत करने में होलकर वंश का विशेष योगदान रहा है। उन्हीं में से एक थे छत्रपति शिवाजीराव होलकर, जिनकी वीरता, राजनैतिक समझ और जनसेवा के कार्यों ने उन्हें इतिहास में अमर बना दिया। इंदौर में स्थित उनकी समाधि न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि आज भी यह स्थान लोगों को प्रेरणा और श्रद्धा का केंद्र प्रदान करता है। शिवाजीराव होलकर कौन थे? शिवाजीराव होलकर द्वितीय (शासनकाल: 1834 – 1886) मराठा साम्राज्य के एक प्रमुख राजा थे, जो होलकर वंश से संबंधित थे। वह होलकर रियासत के महाराजाधिराज थे, जिनका योगदान इंदौर के सामाजिक और शैक्षणिक विकास में अविस्मरणीय रहा है। उनका शासन काल ब्रिटिश राज के समय था, परंतु उन्होंने भारतीय परंपराओं और मराठा गौरव को बनाए रखा। वे न केवल एक पराक्रमी शासक थे, बल्कि जनता के प्रिय और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने कई धर्मशालाओं, विद्यालयों, मंदिरों और सरायों का निर्माण कराया। समाधि स्थल – एक सांस्कृतिक धरोहर इंदौर के राजवाड़ा क्षेत्र के निकट स्थित यह समाधि स्थल उनकी मृत्यु के बाद निर्मित किया गया था। यहाँ उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार वैदिक विधि से हुआ और उस स्थान को एक स्मारक के रूप में विकसित किया गया। समाधि स्थल की विशेषताएं: यह समाधि स्थल उन पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है जो मराठा इतिहास और इंदौर की विरासत को नजदीक से देखना चाहते हैं। धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्व होलकर वंश शिवभक्त और ज्योतिष में विश्वास रखने वाले शासक रहे हैं। छत्रपति शिवाजीराव होलकर स्वयं नक्षत्रों, ग्रहों और शुभ मुहूर्तों के अनुसार कार्य करते थे। उनकी समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करने से, विशेषकर मंगलवार या शनिवार के दिन, जातक को: समय और दर्शन की जानकारी क्यों जाएँ इस समाधि स्थल पर? नजदीकी पर्यटन स्थल: समापन विचार छत्रपति शिवाजीराव होलकर की समाधि न केवल एक राजसी स्मृति है, बल्कि वह एक जीवित प्रेरणा है। इस स्थल की यात्रा हमें यह स्मरण कराती है कि किस प्रकार एक राजा ने अपनी बुद्धिमत्ता, पराक्रम और जनता के कल्याण के लिए जीवन समर्पित किया। यदि आप इंदौर में हैं, तो इस समाधि स्थल पर अवश्य जाएँ और इतिहास की इस अमूल्य धरोहर को नमन करें। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट्स के लिए हमारी वेबसाइट Best Indore पर जरूर विजिट करें।
महात्मा गांधी हॉल, इंदौर — शहर का गौरवशाली प्रतीक

महात्मा गांधी हॉल इंदौर की उन गिनी-चुनी ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जो शहर की सांस्कृतिक और औपनिवेशिक विरासत की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करती है। यह भवन न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि इंदौर के शहरी जीवन के विकास की गवाही भी देता है। शहर के मध्य स्थित यह स्थल अपनी भव्यता, ऐतिहासिकता और सामाजिक गतिविधियों के कारण इंदौरवासियों के लिए गौरव का विषय बना हुआ है। यहाँ साल भर सांस्कृतिक, साहित्यिक और सामाजिक आयोजन होते रहते हैं, जिससे यह स्थान जीवंत बना रहता है। इतिहास की झलक: महात्मा गांधी हॉल का इतिहास 1904 से शुरू होता है, जब ब्रिटिश शासनकाल के दौरान इसका निर्माण करवाया गया था। इसे शुरू में ‘किंग एडवर्ड हॉल’ के नाम से जाना जाता था, जो उस समय ब्रिटिश सम्राट किंग एडवर्ड सप्तम के नाम पर रखा गया था। यह इमारत ब्रिटिश प्रशासनिक और सामाजिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र हुआ करती थी। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद जब देश भर में अंग्रेजी प्रभाव को हटाकर भारतीय पहचान को प्रमुखता दी जा रही थी, तब इस हॉल का नाम बदलकर ‘महात्मा गांधी हॉल’ रख दिया गया। यह नाम परिवर्तन न केवल राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बना, बल्कि इस भवन को स्वतंत्र भारत के गौरव से भी जोड़ दिया। इस हॉल ने समय के साथ इंदौर के सामाजिक बदलावों को नजदीक से देखा है और आज भी यह शहर की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में खड़ा है। वास्तुकला की विशेषताएं: महात्मा गांधी हॉल की वास्तुकला इसकी सबसे प्रमुख विशेषता है। इसे इंडो-गॉथिक शैली में डिज़ाइन किया गया है, जो भारतीय और यूरोपीय स्थापत्य शैलियों का सुंदर समावेश है। इस भवन को बंबई (अब मुंबई) के प्रसिद्ध वास्तुविद चार्ल्स फ्रेडरिक स्टीवंस ने डिज़ाइन किया था। इस हॉल का सबसे आकर्षक भाग है इसका घड़ी टॉवर, जिसे चारों दिशाओं से देखा जा सकता है। यह टॉवर हॉल के केंद्र में स्थित है और एक भव्य गुंबद से सुसज्जित है। इसी कारण इसे ‘घंटाघर’ या ‘क्लॉक टॉवर’ भी कहा जाता है। भवन में बने राजपूत शैली के गुंबद, मीनारें, सजावटी पट्टियाँ, खुली छतें, और ऊँची छतों वाले कक्ष इसकी भव्यता में चार चांद लगाते हैं। पूरा परिसर एक ही समय में लगभग 2000 लोगों को समायोजित कर सकता है, जिससे यह बड़े आयोजनों के लिए आदर्श स्थल बनता है। हॉल में मौजूद सुविधाएँ: इस ऐतिहासिक इमारत में आधुनिकता के साथ-साथ उपयोगिता का भी पूरा ध्यान रखा गया है। हॉल के अंदर एक पुस्तकालय है, जो ज्ञान-पिपासु पाठकों के लिए एक शांतिपूर्ण अध्ययन स्थल प्रदान करता है। यहां स्थानीय इतिहास, साहित्य और सामाजिक विषयों से जुड़ी कई पुस्तकें उपलब्ध हैं। बच्चों के लिए एक सुंदर पार्क भी मौजूद है, जो परिवार के साथ आने वाले पर्यटकों के लिए एक अतिरिक्त आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा परिसर में एक छोटा मंदिर भी स्थित है, जहाँ स्थानीय लोग श्रद्धा से दर्शन करने आते हैं। वाहन पार्किंग की भी सुविधा यहाँ उपलब्ध है, जिससे पर्यटक बिना किसी असुविधा के अपने निजी वाहन लेकर आ सकते हैं। यहाँ की साफ-सफाई और सुव्यवस्थित रख-रखाव भी दर्शकों को प्रभावित करता है। संस्कृति और आयोजन स्थल: महात्मा गांधी हॉल केवल एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, बल्कि यह इंदौर की सांस्कृतिक गतिविधियों का एक जीवंत केंद्र भी है। वर्ष भर यहाँ संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला प्रदर्शनियां, तथा स्थानीय मेले और सरकारी समारोह आयोजित किए जाते हैं। यह हॉल कलाकारों, कवियों, चित्रकारों और सांस्कृतिक संगठनों को एक सशक्त मंच प्रदान करता है जहाँ वे अपनी कला और विचारों को समाज के सामने रख सकते हैं। इसके विशाल प्रेक्षागृह और खुले परिसर बड़े-बड़े आयोजनों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने में सहायक होते हैं। पर्यटन महत्व: महात्मा गांधी हॉल इंदौर के विरासत पर्यटन का एक अभिन्न हिस्सा है। जो भी इंदौर आता है, वह इस ऐतिहासिक स्थल को अवश्य देखना चाहता है। यह इमारत शहर के गौरवशाली अतीत और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह हॉल न केवल स्थानीय नागरिकों के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक शैक्षणिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करता है। इसकी भव्य बनावट और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होकर अनेक फोटोग्राफर, ब्लॉगर और इतिहास प्रेमी यहां आते हैं। इंदौर की पहचान के रूप में यह हॉल आज भी शहर के हृदयस्थल पर अपनी गरिमा के साथ स्थित है। घूमने का समय: महात्मा गांधी हॉल प्रतिदिन प्रातः से सायं तक खुला रहता है। पर्यटक किसी भी दिन यहाँ भ्रमण कर सकते हैं, परंतु यदि आप किसी विशेष आयोजन या प्रदर्शनी में सम्मिलित होना चाहते हैं, तो यात्रा से पूर्व आयोजनों की जानकारी लेना और समय की पुष्टि करना उचित रहेगा। हॉल की प्रकाश व्यवस्था और देखरेख शानदार है, जिससे शाम के समय भी यहाँ घूमना सुखद अनुभव बनता है। स्थान और पहुँच: यह ऐतिहासिक हॉल इंदौर जंक्शन रेलवे स्टेशन से बेहद निकट स्थित है, जिससे यहाँ पहुँचना सुविधाजनक है। चाहे आप रेल, बस या निजी वाहन से यात्रा कर रहे हों, महात्मा गांधी हॉल तक पहुँचना सरल और सीधा है। पास में ऑटो, टैक्सी और सिटी बस की उपलब्धता भी है। महात्मा गांधी हॉल, इंदौर की उन विरासत स्थलों में से है जो अतीत और वर्तमान को एक साथ जोड़ता है। इसकी स्थापत्य कला, सांस्कृतिक योगदान और सामाजिक उपयोगिता इसे एक अनोखी पहचान प्रदान करते हैं। यदि आप इंदौर की यात्रा पर हैं, तो महात्मा गांधी हॉल को देखना न भूलें। यह स्थान न केवल आपकी स्मृतियों में रहेगा, बल्कि शहर के इतिहास से आपका साक्षात्कार भी कराएगा। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट्स के लिए हमारी वेबसाइट Best Indore पर जरूर विजिट करें।
सेंट्रल म्यूजियम इंदौर: मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर का अद्भुत संगम

सेंट्रल म्यूजियम, जिसे इंदौर संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है, न केवल मध्य प्रदेश के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है, बल्कि यह उस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है जिसे इंदौर सदियों से संजोए हुए है। 1929 में होलकर शासकों द्वारा स्थापित यह संग्रहालय, आज भी इतिहास प्रेमियों, शोधकर्ताओं और कला के जिज्ञासु विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। संग्रहालय का वर्तमान स्थान, जो इंदौर के जनरल पोस्ट ऑफिस के समीप(PV4H+3HW, Near GPO Square, Residency, Navlakha, Indore, Madhya Pradesh 452001) स्थित है, 1965 में तब निर्धारित किया गया जब इसे राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकार में लाकर केंद्रीय संग्रहालय घोषित किया गया। इस स्थान पर आने वाला प्रत्येक आगंतुक प्राचीन भारतीय सभ्यता की विविधताओं और सांस्कृतिक गहराइयों को देखने और समझने का एक दुर्लभ अवसर प्राप्त करता है। इस संग्रहालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर मध्यकालीन भारत तक की अनगिनत कलाकृतियां, मूर्तियां, सिक्के और हथियार एक ही छत के नीचे देखने को मिलते हैं। संग्रहालय में कुल आठ दीर्घाएँ हैं, जिनमें से दो प्रमुख दीर्घाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं — एक प्रागैतिहासिक कलाकृतियों के लिए समर्पित है और दूसरी हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ी मूर्तिकला और नक्काशी को प्रदर्शित करती है। विशेष रूप से परमार शैली की मूर्तियां इस संग्रहालय की शोभा को और भी बढ़ा देती हैं, क्योंकि इन मूर्तियों की जटिलता, बारीकी और उत्कृष्ट शिल्प कौशल देखने लायक होता है। इसके अतिरिक्त, संग्रहालय में 11वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प अवशेष भी प्रदर्शित किए गए हैं, जिनमें एक भव्य दरवाजे का ढांचा प्रमुख आकर्षण का केंद्र है, जो तत्कालीन निर्माण कला और धार्मिक शिल्प की गहराई को दर्शाता है। इतना ही नहीं, संग्रहालय में मराठा, राजपूत और मुगल कालीन हथियारों का प्रभावशाली संग्रह भी है, जिससे यह समझना आसान हो जाता है कि भारत की युद्ध संस्कृति और सैन्य प्रणाली किस प्रकार से विकसित हुई। इन हथियारों में तलवारें, ढालें, भाले, और पुराने बंदूक जैसे स्वदेशी और आधुनिक दोनों प्रकार के शस्त्र सम्मिलित हैं। इसके साथ-साथ, मध्य प्रदेश के विभिन्न प्राचीन मंदिरों से प्राप्त अवशेषों का यह संग्रहालय संरक्षण भी करता है, जिससे राज्य की धार्मिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य कला के गौरवशाली अतीत की स्पष्ट झलक मिलती है। सिक्कों का संग्रह भी अत्यंत समृद्ध है, जो प्राचीन मुद्राओं के माध्यम से भारत के आर्थिक इतिहास की यात्रा कराता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सेंट्रल म्यूजियम, इंदौर न केवल इंदौर शहर की शान है, बल्कि यह संपूर्ण मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक चेतना को संरक्षित करने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र भी है। यदि आप भारतीय संस्कृति, कला और इतिहास में रुचि रखते हैं, तो यह संग्रहालय आपके लिए अवश्य ही एक अविस्मरणीय अनुभव सिद्ध होगा। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट्स के लिए हमारी वेबसाइट Best Indore पर जरूर विजिट करें।
इंदौर का छत्रीबाग – होलकर राजवंश की भव्य धरोहर और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम

इंदौर का छत्रीबाग: जहां इतिहास, कला और संस्कृति एक साथ जीवंत होती है जब पेशवाओं ने मालवा की बागडोर होलकर वंश को सौंपी, तब मल्हार राव होलकर ने प्रथम सूबेदार के रूप में इस भूमि पर शासन की नींव रखी। प्रारंभ में उन्होंने कंपेल गांव को चुना, किंतु शीघ्र ही इंदौर में आकर सत्ता को विस्तार दिया। यद्यपि स्वतंत्रता के बाद राजे-रजवाड़ों और रियासतों का युग समाप्त हो गया, फिर भी उन गौरवशाली दिनों की छाप आज भी इंदौर की हवाओं में महसूस की जा सकती है। इन्हीं ऐतिहासिक यादों का सुंदर प्रतिबिंब छत्रीबाग परिसर में देखा जा सकता है, जहां एक किलेनुमा परकोटे के बीच, होलकर परिवार के राजाओं और रानियों की छत्रियां आज भी गर्व से खड़ी हैं। जीर्णोद्धार के बाद बदली तस्वीर: बदहाली से खुशहाली तक का सफर स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत लगभग 4.3 करोड़ रुपये की लागत से छत्रीबाग का कायाकल्प किया गया है। पहले जहां वीरानी और उपेक्षा का आलम था, अब वहीं सुव्यवस्थित उद्यान, सुंदर पाथवे और आधुनिक लाइटिंग ने इस ऐतिहासिक स्थल को नई पहचान दी है। अब यह परिसर खासगी ट्रस्ट के संरक्षण में है और पर्यटक सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक यहां भ्रमण कर सकते हैं। होलकर राजवंश की छत्रियां: हर कृति में है इतिहास की आत्मा इस परिसर में आठ प्रमुख छत्रियों के अतिरिक्त अन्य सदस्य जैसे गौतमाबाई, खांडेराव, तुकोजीराव द्वितीय, स्नेहलता राजे आदि की छत्रियां भी स्थापित हैं। सबसे पहली छत्री मल्हार राव होलकर की थी, जिसका निर्माण 1780 में देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। इन छत्रियों की विशिष्टता यह है कि हर एक छत्री की शिल्पकला, नक्काशी और स्थापत्य शैली भिन्न है। मल्हार राव व मालेराव की छत्रियां राजपूत छत्री परंपरा में बनी हैं, जिनमें ऊँची जगती और अष्टकोणीय गर्भगृह हैं। स्थापत्य कला का अद्भुत समागम: राजपूत और मराठा शैली की झलक यहां की छत्रियां राजपूत और मराठा स्थापत्य का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करती हैं। मल्हार राव की छत्री विशेष रूप से आकर्षक है, जिसमें देवी-देवताओं की मूर्तियां, बेलबूटे, सूर्य और यम जैसी आकृतियां बनी हुई हैं। गौतमाबाई की छत्री में स्थापित पार्वती जी की मूर्ति विशेष ध्यान आकर्षित करती है, जिसमें वे शिवजी का अभिषेक करती प्रतीत होती हैं। वहीं खांडेराव की छत्री में अहिल्याबाई समेत अन्य रानियों की मूर्तियां स्थापित हैं। आधुनिक रोशनी और सुविधाएं: अब शूटिंग और इवेंट्स की भी है अनुमति हाल ही में परिसर में सुंदर विद्युत सज्जा की गई है, जिससे रात के समय भी छत्रियों की भव्यता निखरकर सामने आती है। अब यह स्थल न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए बल्कि फोटोग्राफरों, शूटिंग और सांस्कृतिक आयोजनों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। हालांकि, शूटिंग व इवेंट्स के लिए पूर्व अनुमति और शुल्क आवश्यक है। इसके साथ ही यहां एक खूबसूरत बगीचा भी विकसित किया जा रहा है। छत्रीबाग कैसे पहुंचें: Indore में यात्रा की पूरी जानकारी रेलमार्ग से: छत्रीबाग, इंदौर जंक्शन से लगभग 2.8 किलोमीटर और सैफी नगर स्टेशन से मात्र 2.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से आसानी से ऑटो या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है। बस मार्ग से: GDC, Old GDC, कर्बला, कलेक्टोरेट और मालगंज बस स्टॉप्स इसके निकटवर्ती बस स्टॉप हैं। हवाई मार्ग से: देवी अहिल्या बाई होलकर एयरपोर्ट से यह स्थल केवल 9 किलोमीटर की दूरी पर है। हवाई अड्डे से कैब की सुविधा सरलता से उपलब्ध है। छत्रीबाग खुलने का समय: प्रवेश समय: सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तकफोटोग्राफी और शूटिंग: निर्धारित शुल्क व अनुमति के बाद छत्रीबाग – अतीत की महिमा और वर्तमान की प्रेरणा छत्रीबाग न केवल इंदौर की ऐतिहासिक विरासत है, बल्कि यह स्थापत्य कला, संस्कृति और राजवंश की भव्यता का प्रतीक भी है। दिन में इसकी भव्यता तो रात में रोशनी से नहाए छत्रियों की सुंदरता देखने योग्य है। यदि आप इंदौर के राजघराने के इतिहास को करीब से जानना चाहते हैं, स्थापत्य प्रेमी हैं या बस कुछ शांत और सुंदर देखना चाहते हैं – तो छत्रीबाग आपके लिए एक आदर्श स्थल है। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट्स के लिए हमारी वेबसाइट Best Indore पर जरूर विजिट करें।
राजवाड़ा पैलेस: होलकर वंश की गौरवशाली विरासत

जब बात भारत के ऐतिहासिक स्थलों की होती है, तो आमतौर पर दिल्ली का लाल किला, कुतुब मीनार या आगरा का ताजमहल याद आता है। लेकिन क्या आपने कभी मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित राजवाड़ा पैलेस के बारे में सुना है? यह भव्य महल होलकर वंश की शक्ति और संस्कृति का प्रतीक है। आइए जानते हैं राजवाड़ा पैलेस की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता के बारे में। राजवाड़ा पैलेस का इतिहास राजवाड़ा पैलेस को होलकर महल या राजवाड़ा महल के नाम से भी जाना जाता है। इसकी वास्तुकला मुग़ल, मराठा और फ्रेंच शैली का अनूठा संगम है। इसका निर्माण होलकर वंश के संस्थापक मल्हारराव होलकर ने वर्ष 1747 में करवाया था। उन्होंने इंदौर को अपनी राजधानी बनाया और प्रशासनिक व आवासीय उद्देश्य से इस महल का निर्माण कराया। यह महल कई ऐतिहासिक उतार-चढ़ाव का गवाह बना है। राजवाड़ा को पिडारी, सिंधिया और ब्रिटिश आक्रमणकारियों द्वारा तीन बार जलाया गया। इतिहासकारों के अनुसार अंतिम बार यह महल 1984 के दंगों में जलकर खाक हो गया, जिसमें ऊपरी चार मंज़िलें नष्ट हो गईं और केवल पत्थर से बनी निचली मंज़िलें ही बच पाईं। लेकिन भारत सरकार और होलकर परिवार के प्रयासों से यह महल फिर से पुनर्निर्मित हुआ। आज यह महल मालवा उत्सव जैसे सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र है, जो इंदौर की कला और संस्कृति को प्रदर्शित करता है। राजवाड़ा पैलेस की वास्तुकला यह सात मंज़िला महल अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण है। इसकी निचली तीन मंज़िलें पत्थर की बनी हैं, जबकि ऊपरी मंज़िलें लकड़ी की हैं। इसका मुख्य द्वार विशाल लकड़ी का है, जो अपने आप में भव्यता को दर्शाता है। महल का आकार आयताकार है और यह लगभग 2.4 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यह दो हिस्सों में बंटा है — मुख्य महल और पिछला महल (Rear Palace)। मुख्य महल पुराना भाग है जो मुख्य सड़क की ओर है, जबकि पिछला महल नया हिस्सा है जो बगीचे और झरने की ओर खुलता है। मुख्य महल राजवाड़ा का मुख्य महल तीन मंज़िला है और इसका प्रवेशद्वार लकड़ी का विशाल दरवाज़ा है, जिसमें फूलों की कलाकारी और लोहे की कीलें लगी हैं। यह कीलें पुराने समय में हाथी के आक्रमण से सुरक्षा के लिए लगाई जाती थीं। इस महल में मुग़ल शैली की मेहराबें, आंगन, मंदिर, और विभिन्न कक्ष हैं। मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है, जिसका दरवाज़ा चाँदी का बना है और गणेशजी की मूर्ति सोने की बनी है। पिछला महल यह भाग चार मंज़िला है जिसमें एक सुंदर बगीचा, झरना, फव्वारा और पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर की कांस्य प्रतिमा है। बगीचे में रंग-बिरंगे फूल हैं और झरने की मधुर ध्वनि मन को शांति देती है। यहाँ का फव्वारा इतना शक्तिशाली है कि पानी की धार 100 फीट तक ऊपर उठती है। हर शाम यहाँ एक लाइट एंड साउंड शो आयोजित किया जाता है, जिसमें राजवाड़ा की ऐतिहासिक गाथा को चित्रित किया जाता है। राजवाड़ा पैलेस घूमने का सर्वोत्तम समय मध्यप्रदेश का मौसम उपोष्ण कटिबंधीय है, जहाँ गर्मी, सर्दी और बारिश तीनों ऋतुएं होती हैं। अक्टूबर से मार्च के बीच का समय राजवाड़ा महल घूमने के लिए सबसे उपयुक्त होता है क्योंकि इस दौरान मौसम ठंडा और सुहावना रहता है। राजवाड़ा पैलेस खुलने का समय राजवाड़ा पैलेस सोमवार से शनिवार तक सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक खुला रहता है। यहाँ प्रवेश टिकट वयस्क और बच्चों की श्रेणी के अनुसार काफी सुलभ दरों पर उपलब्ध है। इंदौर के दिल में स्थित राजवाड़ा पैलेस न केवल इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि आम पर्यटकों के लिए भी यह एक अद्भुत अनुभव प्रदान करता है। यह महल दर्शाता है कि भारत का इतिहास कितना समृद्ध और प्रेरणादायक है। तो जब भी आप इंदौर आएं, राजवाड़ा पैलेस जरूर देखने जाएं और होलकर वंश की गाथा को नजदीक से महसूस करें। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट के लिए हमारी वेबसाइट बेस्ट इंदौर पर अवश्य जाएं।
इंदौर का लाल बाग पैलेस: शाही भव्यता का जीवंत उदाहरण

इंदौर शहर की शान लाल बाग पैलेस न केवल स्थापत्य कला की दृष्टि से बेजोड़ है, बल्कि यह होलकर राजवंश के गौरवशाली इतिहास की भी एक झलक प्रस्तुत करता है। यह ऐतिहासिक महल 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत के बीच बना था, और आज भी इसकी भव्यता हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देती है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से शुरुआत करें तो, लाल बाग पैलेस का निर्माण 1886 से 1921 के बीच महाराजा शिवाजी राव होलकर द्वारा करवाया गया था। इस महल को होलकर राजाओं के शाही निवास और राजकीय समारोहों के लिए उपयोग में लाया जाता था। आगे बढ़ते हुए, इसकी वास्तुकला की बात करें तो, यह महल इंडो-यूरोपीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसमें यूरोपीय और भारतीय शैली का सुंदर संगम देखने को मिलता है, जो इसकी खास पहचान है। यही नहीं, इसके अंदरूनी हिस्से भी उतने ही शानदार हैं, यहाँ की सजावट में इतालवी संगमरमर, भव्य झूमर, फ़ारसी कालीन, बेल्जियम के रंगीन कांच और ग्रीक पौराणिक कथाओं पर आधारित भित्ति चित्र प्रमुख हैं। इन विशेषताओं के कारण यह महल केवल एक इमारत नहीं बल्कि कला का जीवंत संग्रहालय बन चुका है। समय के साथ, इस महल ने नया रूप भी लिया, 1978 के बाद, लाल बाग पैलेस को एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। अब इसमें होलकर राजवंश की विरासत को संजोया गया है – जैसे कि शाही फर्नीचर, पेंटिंग्स, शिकार की ट्रॉफियाँ, और ऐतिहासिक दस्तावेज। इसके अलावा, महल में एक शानदार बॉलरूम भी है जो उस दौर की शाही जीवनशैली को दर्शाता है। इतना ही नहीं, इसका मुख्य द्वार लंदन के बकिंघम पैलेस की तर्ज पर डिजाइन किया गया है, जो इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाली स्थापत्य शैली को दर्शाता है। पर्यटन के लिहाज से, लाल बाग पैलेस न केवल इतिहास प्रेमियों, बल्कि वास्तुकला, संस्कृति और कला के विद्यार्थियों के लिए भी एक अद्भुत स्थल है। महल 28 एकड़ क्षेत्र में फैला है और इसके चारों ओर बना सुंदर उद्यान शांति और प्रकृति से जुड़ने का अवसर देता है। घूमने का समय: अगर आप लाल बाग पैलेस घूमने का विचार कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि यह सोमवार को बंद रहता है। बाकी दिनों में यह सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक खुला रहता है। स्थान की बात करें तो, यह महल इंदौर के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित है और खान नदी के तट पर बना हुआ है। इसका प्राकृतिक परिवेश इसे और भी मनोहारी बनाता है। फिल्मों और शोज़ की पसंद: इतिहास और सुंदरता का अद्भुत संगम होने के कारण, इस महल का उपयोग कई फिल्मों और टीवी शोज़ की शूटिंग के लिए भी किया गया है। लाल बाग पैलेस, केवल एक ऐतिहासिक इमारत नहीं बल्कि इंदौर की आत्मा का एक जीवंत हिस्सा है। यदि आप शाही इतिहास, कला और संस्कृति में रुचि रखते हैं, तो यह स्थान आपकी यात्रा सूची में अवश्य शामिल होना चाहिए। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट के लिए हमारी वेबसाइट बेस्ट इंदौर पर अवश्य जाएं।
कृष्णा पुरा छत्री, इंदौर – मराठा विरासत का एक भव्य प्रतीक

कृष्णा पुरा छत्री, इंदौर इंदौर की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक कृष्णा पुरा छत्री शहर की हलचल से दूर एक शांत स्थान पर स्थित है। यह स्थल न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है, बल्कि यह इंदौर के शासकों की वीरता और सम्मान की गाथा को भी दर्शाता है। होलकर वंश की स्मृति में निर्मित यह छत्रियां आज भी उस गौरवशाली युग की गवाही देती हैं। स्थान और आवश्यक जानकारी कैसे पहुंचे? इंदौर एक प्रमुख शहर है और भारत के कई शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। रेलवे, हवाई यात्रा और सड़क मार्ग से आप इंदौर पहुँच सकते हैं। कृष्णा पुरा छत्री, राजवाड़ा से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहाँ आप ऑटो, रिक्शा या टैक्सी के माध्यम से आसानी से पहुँच सकते हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि कृष्णा पुरा छत्री का निर्माण 1800 के उत्तरार्ध में हुआ था। यह छत्रियां होलकर वंश के शासकों की स्मृति में बनाई गई थीं, जिनका इंदौर पर शासन 1948 तक रहा। यह स्मारक खान नदी के किनारे स्थित है और इसका दृश्य अत्यंत मनोहारी है। होलकर वंश मराठा समाज के धनगर जाति से संबंध रखते थे। उन्होंने मुग़ल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध युद्ध किए और इंदौर को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित किया। स्थापत्य विशेषताएं यह छत्रियां माराठा शैली में निर्मित हैं। इनकी बनावट में पत्थरों का विशेष उपयोग हुआ है जिससे इसका बाहरी स्वरूप और भी भव्य लगता है। यहाँ कुल तीन छत्रियां हैं, जिनमें— परिसर का सौंदर्य खान नदी के किनारे स्थित होने के कारण इस स्थल की प्राकृतिक छटा और भी निखरकर सामने आती है। आसपास के हरियाली और शांत वातावरण इसे शांति प्रिय पर्यटकों के लिए आदर्श स्थल बनाते हैं। यह स्थल राजवाड़ा महल से बहुत पास है, जिससे आप दोनों स्थानों की यात्रा एक साथ कर सकते हैं। कृष्णा पुरा छत्री के रोचक तथ्य भव्य स्थापत्य कला यह छत्रियां मराठा राजाओं की उत्कृष्ट स्थापत्य समझ का प्रमाण हैं। तीन दिशाओं में निर्मित छत्रियांप्रत्येक छत्री एक अलग शासक को समर्पित है, जिससे यहाँ एक त्रैतीय संरचना का दृश्य उत्पन्न होता है। प्राचीन मूर्तियाँपरिसर में शूरवीर सैनिकों, दरबारियों, संगीतकारों और राजाओं की प्राचीन मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। बाहरी दीवारों की नक्काशीभगवानों और देवियों की सुंदर नक्काशी दीवारों पर की गई है, जो इस स्थल की भव्यता को और भी बढ़ाती है। पुनर्निर्माण प्रयासइंदौर गौरव फाउंडेशन द्वारा छत्रियों की सफाई और संरक्षण के लिए विशेष पहल की गई है। 2018 में इसे ऐतिहासिक वॉकिंग टूर में भी शामिल किया गया। क्यों है यह स्थल लोकप्रिय? कृष्णा पुरा छत्री केवल एक दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि यह वीरता, भक्ति और वास्तु कला का संगम है। यहाँ आकर आप न केवल इतिहास को करीब से महसूस करेंगे, बल्कि इंदौर की गौरवशाली विरासत से भी रूबरू होंगे। यह स्थल इतिहास प्रेमियों, फोटोग्राफरों और शांत वातावरण में समय बिताने वाले लोगों के लिए एक आदर्श जगह है। यात्रा के सुझाव यदि आप इंदौर की ऐतिहासिक आत्मा को महसूस करना चाहते हैं, तो कृष्णा पुरा छत्री की यात्रा अवश्य करें। यह न केवल एक स्मारक है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य निधि है। इंदौर की अधिक जानकारी, हर क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विकल्प और स्थानीय अपडेट के लिए हमारी वेबसाइट बेस्ट इंदौर पर अवश्य जाएं।
मांडू को मिलेगा नया पर्यटन रूप, स्थानीय होमस्टे को मिलेगा बढ़ावा

इंदौर: ऐतिहासिक किलों के लिए प्रसिद्ध मांडू शहर को पर्यटन सुविधाओं और आधारभूत संरचना को बेहतर बनाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण विकास योजनाओं के तहत संवारा जा रहा है। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड (MPTB) के अनुसार, इस सौंदर्यीकरण परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 25 करोड़ रुपये है। इंदौर क्षेत्र के सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटक स्थलों में शामिल मांडू में हाल के वर्षों में पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इंदौर के पास स्थित ऐतिहासिक नगरी मांडू को एक बड़े पर्यटन कायाकल्प की दिशा में तैयार किया जा रहा है। मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान का उद्देश्य है मांडू को एक प्रमुख सांस्कृतिक और पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना। इस योजना के अंतर्गत पर्यटन से जुड़ी आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जा रहा है, जैसे अच्छी सड़कें, संकेतक बोर्ड, शौचालय और ईको-फ्रेंडली व्यवस्थाएं। ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण किया जाएगा, जिससे दर्शकों को बेहतर अनुभव मिल सके और स्मारकों की प्राचीनता बनी रहे। स्थानीय निवासियों को होमस्टे योजना से जोड़ा जाएगा, जिससे वे अपने घरों का एक हिस्सा पर्यटकों के लिए आवास में बदल सकें। इससे रोजगार भी उत्पन्न होगा। सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय उत्सवों, गाइडेड टूर और प्रमुख स्थलों जैसे जहाज महल, हिंडोला महल आदि की रात्रि रोशनी की व्यवस्था की जाएगी। पर्यटन विभाग का मानना है कि इस कदम से मांडू को एक प्रमुख ऐतिहासिक और ईको-पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकेगा और स्थानीय लोगों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा। मांडू पर्यटन विकास समाचार पर्यटन और संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश के प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला ने बताया कि सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया मानसून के बाद शुरू की जाएगी। उन्होंने कहा,“हमारा उद्देश्य मांडू को पर्यटकों के लिए और अधिक अनुकूल बनाना है ताकि वे इसकी ऐतिहासिक सुंदरता को पूरी तरह से अनुभव कर सकें। हम चाहते हैं कि हर आगंतुक को यह किलों का शहर एक अविस्मरणीय अनुभव दे।” उन्होंने आगे बताया कि मांडू में बढ़ते पर्यटकों के आगमन से भील जनजाति के कई परिवारों को स्वरोजगार के लिए प्रेरणा मिली, जिन्होंने धार के पास मालिपुरा क्षेत्र में होमस्टे सुविधाएं शुरू की हैं। एक स्थानीय होमस्टे मालिक दिनेश कतारे ने कहा:“हम आगामी पर्यटन सीज़न को लेकर बेहद उत्साहित हैं। हमें जो प्रशिक्षण मिला, उसने हमें अपनी संस्कृति और मेहमानवाजी को पर्यटकों से साझा करने का आत्मविश्वास दिया है। हम और अधिक मेहमानों का स्वागत करने के लिए तत्पर हैं।” ग्रामीण पर्यटन और होमस्टे विकास “हमारे गांव में और भी कई परिवार आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में होमस्टे शुरू करने की योजना बना रहे हैं।” इन परिवारों को इस पहल के लिए तैयार करने हेतु, मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड ने ग्रामीण पर्यटन परियोजना के तहत अतिथि सत्कार और विभिन्न नौकरी भूमिकाओं में प्रशिक्षण प्रदान किया। इस पहल के अंतर्गत राज्यभर के 100 गांवों की पहचान की गई, जहां लाभार्थियों को होमस्टे सुविधाओं के विकास और स्थानीय उत्पादों व पारंपरिक भोजन को बढ़ावा देने में सहायता दी गई। इसके अतिरिक्त, पर्यटन विभाग मांडू, ओरछा और टामिया जैसे स्थलों पर वार्षिक महोत्सवों के आयोजन के लिए साझेदारी कर रहा है। इन महोत्सवों में मनोरंजन और साहसिक गतिविधियों को शामिल कर पर्यटकों के अनुभव को और अधिक समृद्ध बनाने का लक्ष्य रखा गया है।