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इंदौर की बेटी गुरदीप ने देश को दिखाई राह: तीनों इंद्रियों से वंचित होकर भी मिली सरकारी नौकरी

Best Indore NewsIndore's daughter Gurdeep showed the way to the country:

क्यों है ये खबर खास?

Best Indore News: इंदौर के दिल से एक ऐसी कहानी निकलकर सामने आई है, जिसने समाज को झकझोर दिया। 34 वर्षीय गुरदीप कौर वासु, जो देख नहीं सकतीं, सुन नहीं सकतीं और बोल भी नहीं सकतीं, ने वाणिज्यिक कर विभाग (Commercial Tax Department), इंदौर में सरकारी नौकरी हासिल की—और इस नायाब उपलब्धि से वो बन गई हैं देश की पहली बहु‑दिव्यांग महिला सरकारी कर्मचारी। यह सफलता सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि दिव्यांगों के अधिकारों की लड़ाई में एक ऐतिहासिक क्षण भी है

जन्म और प्रारंभिक जीवन की मुश्किलें

इंदौर गुरदीप का जन्म 10 फरवरी 1991 को इंदौर में हुआ। जन्म से ही इस जोड़े जुड़वां बहनों में से एक के रूप में, उन्हें प्रिस्थ यूनिट (incubator) में रखा गया—जिसके कारण उनकी आँखों को नुकसान पहुँचा और दृष्टिहीनता हुई प्रारंभिक सूचक इस बात के थे कि वे सुन नहीं सकतीं और बोल नहीं सकतीं

उनके बचपन के संघर्ष दूर-दूर तक दिखते थे, लेकिन परिवार ने हार नहीं मानी। प्रारंभ में जैसे ही भारी कठिनाई सामने आई, इंदौर से लेकर मुंबई और हैदराबाद तक इलाज करवाया लेकिन संभव नहीं था। घर में निराशा छाई, पर शिक्षा की राह में उनका हौसला अडिग रहा

शिक्षा में संघर्ष – दसवीं से 12वीं तक योग्यता हासिल

  • गुरदीप ने MPBSE बोर्ड की 10वीं परीक्षा भी दी—बिना दृष्टि और श्रवण क्षमता के और एक लेखक की मदद से
  • फिर बड़ी चुनौती थी 12वीं परीक्षा। इसके भी लिए उन्हें Braille और टैक्सटाइल संकेत प्रणाली के माध्यम से पढ़ाई करनी पड़ी और परीक्षा‑समय पर एक लेखक (writer) तैनात किया गया ।
  • इस परीक्षा में उन्होंने 207/400 अंक हासिल किए और द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुईं—इंदौर के इतिहास में यह पहला अवसर था जब कोई बहु‑दिव्यांग व्यक्ति विज्ञान-संबंधित विषयों (जैसे अंग्रेज़ी, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान और ड्रॉइंग) में 12वीं स्तर की परीक्षा पास कर सका ।

सरकारी सेवा में पहला कदम – नियुक्ति का सुनहरा पल

ब्लॉग में प्रेरणादायक बदलाव तब आया जब दिव्यांगानुसार विशेष भर्ती अभियान के अंतर्गत, उनकी योग्यता और मेरिट के आधार पर वाणिज्यिक कर विभाग, इंदौर में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी मिली। इस नौकरी के साथ उन्हें ‘Class IV employee’ के रूप में नियुक्त किया गया

  • विभाग की अतिरिक्त आयुक्त सपना पंकज सोलंकी ने बताया कि गुरदीप की नियुक्ति एक विशेष अभियान के अंतर्गत हुई और इसकी मेरिट बेसिस पर पुष्टि की गई है
  • Типिकल Sign Language विशेषज्ञ मोनिका पुरोहित ने बताया कि गुरदीप हाथों व उंगलियों को दबा कर संचार करती हैं—इसे ‘Tactile Sign Language’ कहा जाता है

यह नियुक्ति न केवल व्यक्तिगत मील का पत्थर है, बल्कि देश भर में दिव्यांगों और विशेषकर बहु‑दिव्यांग महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

समाज और कानूनी पहल – दिव्यांगों के अधिकारों की जीत

  • इंदौर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया जिसमें 100% दिव्यांगों को सर्वप्रथम भर्ती में प्राथमिकता देने का निर्देश दिया। यदि इसके नियमों का उल्लंघन हुआ तो भर्ती की विज्ञप्तियाँ रद्द करने का भी प्रावधान रखा गया
  • आनंद सर्विस सोसाइटी सहित सामाजिक न्याय कार्यकर्ताओं ने गुरदीप की नियुक्ति का स्वागत किया और इस कदम को बैरियर-ब्रेकिंग बताया

परिवार की भूमिका – माँ मनजीत कौर वासु की दुनिया

गुरदीप की माँ मनजीत कौर वासु भावुक होकर कहती हैं:

“गुरदीप हमारे परिवार की पहली सदस्य है जिसने सरकारी नौकरी पाई है। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि वह इस मुकाम तक पहुंचेगी…”

उनका यह बयान इस समर्पण, संघर्ष और परिवार के हौसले को दर्शाता है

कार्यक्षमता और भविष्य

  • भर्ती के एक महीने के भीतर, गुरदीप समय पर कार्यालय आती हैं, कर्मठ हैं और अपनी नियुक्ति के कार्यसीमाओं को सीखने में लगी हैं
  • एक अधिकारी ने बताया कि “वह पूरी लगन से काम सीख रही हैं”—यह न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि सरकारी प्रणाली में बहु‑दिव्यांगों की वास्तविक भागीदारी का उदाहरण भी है

क्या दिखाता है यह उपलब्धि?

क्षेत्रमहत्व
सभी दिव्यांगों के लिए उदाहरणसभी प्रकार की दिव्यांगता पर आधारित जागरूकता बढ़ी
शैक्षिक समावेशनक्लास 12 जैसी कठिन परीक्षा पास कि दिव्यांग छात्राएं
कानूनी बदलावHC आदेश से 100% दिव्यांगों की प्राथमिकता हेतु कानून सुदृढ़
सरकारी भर्ती में बदलावमेरिट-बेस्ड नियुक्ति और संवेदनशीलता का मिलाजुला दृश्य

  • गुरदीप कौर वासु की कहानी सिर्फ नौकरी पाने तक सीमित नहीं—यह शिक्षा, समाज, कानूनी अधिकार और सरकारी व्यवस्था में समावेश की एक मिसाल है।
  • शारीरिक अक्षमता के बावजूद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और सरकारी परीक्षा पास की।
  • उन्होंने दिव्यांग महिलाओं के लिए नए प्रेरणा का स्रोत बनकर दिखाया कि सिर्फ इच्छा शक्ति और अवसर चाहिए।
  • सरकार और न्यायपालिका द्वारा दी गई प्राथमिकता ने यह साबित किया कि सही नीति हो तो हर दिव्यांग नागरिक अपना मुकाम पा सकता है।

इंदौर से निकली यह उत्साहजनक कहानी पूरे भारत को यह संदेश देती है कि बहु‑दिव्यांग होने का मतलब खुद पर आंखें, कान और जुबान बंद कर लेने वाली असफलता नहीं है—बल्कि यह चुनौतियों को पार करने का एक बहुत ही प्रेरक उदाहरण हो सकता है।

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